विधानसभा कर्मचारी भी बर्खास्त हों, पूर्व सीएम हरीश रावत ने क्यों रखी यह मांग
पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि राज्य विधानसभा के अस्तित्व में आने के बाद से विधानसभा अध्यक्ष और सरकार की सहमति से तय नियमावली के तहत नियुक्त किए गए कर्मचारी काम करते आ रहे हैं।
विधानसभा से सितंबर 2022 में बर्खास्त किए गए 250 कर्मचारियों के समर्थन में आए पूर्व सीएम हरीश रावत ने बर्खास्तगी पर सवाल उठाए। कहा कि राज्य गठन से लेकर 2014 तक नियुक्त हुए कर्मचारियों की नियुक्ति यदि वैध है, तो बाद वाले कर्मचारियों की नियुक्ति कैसे गलत हो गई है। यदि बाद वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, तो पुराने कर्मचारियों को भी बर्खास्त कर न्याय किया जाए
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट जारी कर पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि राज्य विधानसभा के अस्तित्व में आने के बाद से विधानसभा अध्यक्ष और सरकार की सहमति से तय नियमावली के तहत नियुक्त किए गए कर्मचारी काम करते आ रहे हैं। हर स्पीकर ने अपने कार्यकाल में ऐसी नियुक्तियां की।
ऐसी नियुक्तियां 2021-22 तक तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल तक हुईं। फिर अचानक सवाल उठा कि यह नियुक्तियां वैध नहीं हैं। एक समान प्रक्रिया के तहत नियुक्त लोगों में से 2014 के बाद जितने भी लोग नियुक्त हुए, उन सभी को विधानसभा की सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
कहा कि पांच साल सेवा करने के बाद बर्खास्त हुए कर्मचारी अपनी बहाली को उच्च न्यायालय की शरण में हैं। एक लंबी कानूनी प्रक्रिया को झेल रहे हैं। शासन का उद्देश्य जनकल्याण है। यदि नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ त्रुटियां रही हैं तो उन त्रुटियां का निराकरण भी शासन को ही निकालना होता है।
कहा कि एक बार नियुक्त किया गया कर्मचारी, वह विधानसभा का कर्मचारी है, वह राज्य का कर्मचारी है। इन बर्खास्त कर्मचारियों की अपनी कोई भूल नहीं है। उन्होंने कुछ तथ्य छुपाए नहीं हैं, उन्हें एक सिस्टम के तहत नियुक्ति दी गई है। यही कारण है कि पहले विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल से जो नियुक्ति की परंपरा चली आई थी, उसी परंपरा के तहत यह सब कर्मचारी 2022 तक नियुक्ति पाए हैं।
यदि कहीं नियुक्तियों में कुछ पारदर्शिता नहीं है तो उसके लिए तथ्य जुटा कर नियुक्ति विशेष पर कार्रवाई की जा सकती है। यदि यह गलत प्रक्रिया के तहत नियुक्त हुए हैं, तो जो प्रारंभ से नियुक्ति पाए हैं, उन्हें भी बर्खास्त किया जाए। कुछ कर्मचारियों को दंडित करना और कुछ को छोड़ देना सही नहीं है।
सीएम और स्पीकर निकालें समाधान
हरीश रावत ने कहा कि इस विषय का मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष मिल कर समाधान निकालें। इसके लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्षों से परामर्श कर समाधान निकाला जा सकता है। बर्खास्त कर्मचारियों को न्याय के आग्रह के लिए कोर्ट के समक्ष जाने की बजाय नियुक्ति कर्ता सरकार और विधानसभा अध्यक्ष के पास से न्याय प्राप्त करने के अधिकार को हमें मान्यता देनी चाहिए। यह प्रश्न विधानसभा के न्यायिक विवेक का है? वर्तमान अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को इस विवेक का सम्मान करना चाहिए।
निर्दलीय का आकलन करने में हुई कांग्रेस से चूक
देहरादून। केदारनाथ उपचुनाव में हार को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि पार्टी से निर्दलीय प्रत्याशी का आकलन करने में चूक हुई। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार को मिले आर्थिक सपोर्ट पर भी सवाल उठाए। केदारनाथ की जीत को मुख्यमंत्री की जीत बताया। सोशल मीडिया पर शुक्रवार को एक बयान जारी कहा कि कांग्रेस केदारनाथ चुनाव हारी। ऐसे में स्वाभाविक है कि हमारी आलोचना होगी। हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि केदारनाथ में निर्दलीय उम्मीदवार की क्षमता का सही आकलन नहीं कर पाए।
हमारी राज्य की #विधानसभा में बहुत सारे कर्मचारी राज्य विधानसभा के अस्तित्व में आने के बाद से विधानसभा अध्यक्ष और सरकार की सहमति से तयसुदा नियमावली के तहत चयनित हुये और विधानसभा के #कर्मचारी के रूप में काम करते आ रहे हैं। प्रत्येक अध्यक्ष ने अपने कार्यकाल में ऐसी नियुक्तियां की हैं। इस प्रकार की नियुक्तियां 2021-22 तक तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल तक चलती आईं। अचानक सवाल उठा कि यह नियुक्तियां वैध नहीं हैं। एक समान प्रक्रिया के तहत नियुक्त लोगों में से एक तिथि के बाद जितने लोग नियुक्त हुए उन सबको विधानसभा की सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। यह सब लोग एक बड़ी अवधि तक काम करने के बाद अब बर्खास्त कर्मचारियों के रूप में अपनी बहाली के लिए माननीय उच्च न्यायालय की शरण में हैं। एक लंबी कानूनी प्रक्रिया को झेल रहे हैं। शासन का उद्देश्य जनकल्याण है। यदि नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ त्रुटियां रही हैं तो उन त्रुटियां का निराकरण भी शासन को ही निकालना होता है। शासन, शासन होता है। केवल राजनीतिक व्यवस्था बदलती है। शेष प्रक्रियाएं शासन की यथावत रहती हैं। यह नहीं कहा जा सकता है कि यह किस अध्यक्ष के द्वारा नियुक्त लोग हैं या किस पार्टी के शासनकाल के अंतर्गत नियुक्त लोग हैं! क्योंकि एक बार नियुक्त किया गया कर्मचारी, वह विधानसभा का कर्मचारी है, वह राज्य का कर्मचारी है। इन बर्खास्त कर्मचारियों की अपनी कोई भूल नहीं है। उन्होंने कुछ तथ्य छुपाए नहीं हैं, उन्हें एक सिस्टम के तहत नियुक्ति दी गई है। यही कारण है कि प्रथम विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल से जो नियुक्ति की परंपरा चली आई थी उसी परंपरा के तहत यह सब कर्मचारी 2022 तक नियुक्ति पाए हैं। यदि कहीं नियुक्तियों में कुछ पारदर्शिता नहीं है तो उसके लिए वह नियुक्ति विशेष पर कार्रवाई की जा सकती है, वह भी तथ्य जुटा कर। उसकी आड़ में एकमुश्त एक तिथि विशेष तक के कर्मचारियों को बर्खास्त करना मुझे न्यायोचित नहीं लग रहा है। मेरा आग्रह है कि राज्य सरकार और विधानसभा अध्यक्ष इस प्रकरण में कर्मचारियों को दंडित करने के बजाय इस संबंध में उन्हें दंडित करें जिन्होंने नियुक्तियां दी हैं। मैं समझता हूं कि यदि यह प्रक्रिया गलत है तो फिर यह प्रक्रिया आधी सही, आधी गलत कैसे हो सकती है? यदि यह गलत प्रक्रिया के तहत नियुक्त हुए हैं जो प्रारंभ से नियुक्ति पाए हैं उन्हें भी बर्खास्त करें। आप कुछ कर्मचारियों को दंडित करें, कुछ को छोड़ दें, जिन्होंने नियुक्तियां दी हैं, उनको दंडित करने या उनके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय जो लोग अपनी सेवा देने के लिए आगे आए जिन्होंने सेवाएं दी, आप उनको बर्खास्त कर रहे हैं? इस प्रकरण में अनंतोगत्वा चोट राज्य पर ही लग रही है, हमारे विवेक को चोट लग रही है, हमारी सत्ता सरकार के रूप में न्याय देने की क्षमता पर चोट लग रही है। मैं आग्रह करना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष, पूर्व विधानसभा अध्यक्षों से परामर्श कर इस विषय का कोई तर्क संगत हल निकालें। बर्खास्त कर्मचारियों को न्याय के आग्रह के लिए न्यायालय के सम्मुख जाने के बजाय नियुक्त कर्ता सरकार और विधानसभा #अध्यक्ष के पास से न्याय प्राप्त करने के अधिकार को हमें मान्यता देनी चाहिए। यह प्रश्न विधानसभा के न्यायिक विवेक का है? माननीय वर्तमान अध्यक्ष व #मुख्यमंत्री को इस विवेक का सम्मान करना चाहिए।
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